बुंदेलखंड का एक गांव जहां आज भी नही है प्राथमिक स्कूल
बकस्वाहा – फहीमउद्दीन खान ,
एक ओर मध्यप्रदेश सरकार शिक्षा के क्षेत्र में साक्षर मध्यप्रदेश बनाने के लिए लाखों रुपये बहा रही है तो वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में एक ऐसा गांव भी है जहां बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल ही नही है।
यह आदिवासी बाहुल्य गांव चारों ओर जंगल से घिरा हुआ है ।
छतरपुर जिला मुख्यालय से 100 किमी दूर बकस्वाहा विकासखंड का एक गांव हरदुआ जहां एक भी व्यक्ति हाईस्कूल तक नही पहुँच पाया।
पूर्ण रूप से आदिवासी इस गांव में निवास करते है लेकिन इस गांव में प्राथमिक स्कूल भी नही है।
दयनीय शिक्षा व्यवस्था को देखते हुए यहां कुछ युवाओं ने गांव में शिक्षा की अलख जगाने का प्रयास किया है।
! हरदुआ गांव पूर्ण रूप से आदिवासी गांव है यह गांव चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है गांव में काफी पहले प्राथमिक विद्यालय था जो कि 2013 -14 में कम बच्चों की वजह से बंद कर दिया गया जबकि स्कूल भवन आज भी बना हुआ है।स्कूल बंद हो जाने के कारण प्राथमिक शिक्षा के लिए छोटे-छोटे बच्चों को घने जंगल को पार करते हुए लगभग 3 किलोमीटर दूर कसेरा गांव जाना पड़ता था, प्रारंभ में कुछ दिन बच्चों ने कसेरा स्कूल जाने का प्रयास किया किंतु मार्ग में जंगली जानवर बहुत बड़ी बाधा बनकर सामने आए लेकिन 6-7 साल के बच्चे इतनी दूर पैदल ना जा
सके ।
आर्थिक रूप से जूझते परिवार बच्चों के लिए आवागमन की व्यवस्था कैसे कर पाते ?
इस कारण बच्चों ने स्कूल जाना ही बंद कर दिया वर्तमान में इस गांव की अधिकतम शैक्षणिक योग्यता आठवीं है, आज तक इस गांव से कोई भी छात्र हाई स्कूल पास नही कर सका!
इस आदिवासी गांव के बाशिन्दों की सुध लेने सरकार ने कोई ठोस पहल नही की और यही कारण है कि इस डिजिटल जमाने मे यह गांव शिक्षा से बंचित है यहां क खा ग पढ़ाने तक कि व्यवस्था स्थानीय प्रशासन नही कर सका है।
इस विकट समस्या को देखते हुए शिक्षा पर कार्य करने वाले समाजसेवी अरविंद निषाद ने सभी ग्राम वासियों के साथ चर्चा की , चर्चा में हरदुआ ग्राम वासियों के अलावा हृदयपुर से छोटू बारेला ,सुर सिंह बारेला एवं हरिपुरा से गोपाल जी जैसे शिक्षित आदिवासी बंधु भी शामिल हुए जिन्होंने हरदुआ गांव के युवाओं को एवं बच्चों को शिक्षा के महत्व को बताया!
चर्चा के दौरान सभी की सहमति से निर्णय लिया गया कि जब तक प्राथमिक विद्यालय नहीं खुल जाता तब तक
सभी की सहमति से ग्राम वासियों ने स्वयं कोचिंग व्यवस्था करने की योजना बनाई है एवं “गांव का ,गांव के लिए, गांव के द्वारा शिक्षा मॉडल” बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित हुए है
शिक्षक के रूप में निलेश बारेला, सुमेश बारेला एवं मेहरबान बारेला को नियुक्त करने के लिए ट्रायल के तौर पर लिया है 2 माह सफल संचालन के पश्चात इनका मानदेय ग्रामीण शिक्षा समिति तय कर प्रदान करेगी!
गांव वालों का यह निर्णय अब प्राशनिक अधिकारियों नेताओं के गाल पर एक तमाचा साबित होने जा रहा है